वो आग लगी पान चबाए से कसू की
अब तक नहीं बुझती है बुझाए से कसू की
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जाँ-कनी पेशा हो जिस का वो लहक है तेरा
ग़ुंचा को मैं ने चूमा लाया दहन को आगे
तीर पहलू में नहीं ऐ रुफ़क़ा-ए-पर्वाज़
एहसान जो अजल से काम तेरा बिगड़े
ज़ात उस की कोई अजब शय है
दोश-ब-दोश दोश था मुझ से बुत-ए-करिश्मा-कोश
दिल-रुबा तुझ सा जो दिल लेने में अय्यारी करे
गर है दुनिया की तलब ज़ाहिद-ए-मक्कार से मिल
नहीं सुनता नहीं आता नहीं बस मेरा चलता है
सुन रख ओ ख़ाक में आशिक़ को मिलाने वाले
किस को उस का ग़म हो जिस दम ग़म से वो ज़ारी करे
ग़म याँ तो बिका हुआ खड़ा है