मिरी बात-चीत उस से 'एहसाँ' कहाँ है
न उस का दहाँ है न मेरी ज़बाँ है
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कौन सानी शहर में इस मेरे मह-पारे की है
न अदा मुझ से हुआ उस सितम-ईजाद का हक़
उस लब-ए-बाम से ऐ सरसर-ए-फुर्क़त तू बता
नसीब उस के शराब-ए-बहिश्त होवे मुदाम
दिल तो हाज़िर है अगर कीजिए फिर नाज़ से रम्ज़
गले से लगते ही जितने गिले थे भूल गए
एक बोसे से मुराद-ए-दिल-ए-नाशाद तो दो
अपनी ना-फ़हमी से मैं और न कुछ कर बैठूँ
आँखों में मुरव्वत तिरी ऐ यार कहाँ है
यारा है कहाँ इतना कि उस यार को यारो
ख़फ़ा मत हो मुझ को ठिकाने बहुत हैं
तनख़्वाह एक बोसा है तिस पर ये हुज्जतें