Hope Poetry of Abrar Ahmad

Hope Poetry of Abrar Ahmad
नामअबरार अहमद
अंग्रेज़ी नामAbrar Ahmad
जन्म की तारीख1954
जन्म स्थानLahore

कि जैसे कुंज-ए-चमन से सबा निकलती है

कहीं कोई चराग़ जलता है

भर लाए हैं हम आँख में रखने को मुक़ाबिल

तिरी दुनिया के नक़्शे में

मिट्टी से एक मुकालिमा

मौत दिल से लिपट गई उस शब

हम कि इक भेस लिए फिरते हैं

हवा जब तेज़ चलती है

हमारे दुखों का इलाज कहाँ है

आख़िरी दिन से पहले

ये रह-ए-इश्क़ है इस राह पे गर जाएगा तू

यक़ीन है कि गुमाँ है मुझे नहीं मालूम

तुझ से वाबस्तगी रहेगी अभी

राह दुश्वार भी है बे-सर-ओ-सामानी भी

क़िस्से से तिरे मेरी कहानी से ज़ियादा

क्या जानिए क्या है हद-ए-इदराक से आगे

कुछ काम नहीं है यहाँ वहशत के बराबर

कोई सोचे न हमें कोई पुकारा न करे

कि जैसे कुंज-ए-चमन से सबा निकलती है

कहीं पर सुब्ह रखता हूँ कहीं पर शाम रखता हूँ

जो भी यकजा है बिखरता नज़र आता है मुझे

इक फ़रामोश कहानी में रहा

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