कि जैसे कुंज-ए-चमन से सबा निकलती है
तिरे लिए मेरे दिल से दुआ निकलती है
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मैं ठहरता गया रफ़्ता रफ़्ता
भर लाए हैं हम आँख में रखने को मुक़ाबिल
राह दुश्वार भी है बे-सर-ओ-सामानी भी
यूँ ही निमटा दिया है जिस को तू ने
हमें ख़बर नहीं कुछ कौन है कहाँ कोई है
कहीं कोई चराग़ जलता है
क़िस्से से तिरे मेरी कहानी से ज़ियादा
हम यक़ीनन यहाँ नहीं होंगे
मुझे डर लगता है
ये रह-ए-इश्क़ है इस राह पे गर जाएगा तू
हर रुख़ है कहीं अपने ख़द-ओ-ख़ाल से बाहर
कुछ काम नहीं है यहाँ वहशत के बराबर