Love Poetry of Abroo Shah Mubarak (page 2)

Love Poetry of Abroo Shah Mubarak (page 2)
नामआबरू शाह मुबारक
अंग्रेज़ी नामAbroo Shah Mubarak
जन्म की तारीख1685
मौत की तिथि1733
जन्म स्थानDelhi

नाज़नीं जब ख़िराम करते हैं

नालाँ हुआ है जल कर सीने में मन हमारा

मोहब्बत सेहर है यारो अगर हासिल हो यक-रूई

मत मेहर सेती हाथ में ले दिल हमारे कूँ

मत ग़ज़ब कर छोड़ दे ग़ुस्सा सजन

क्यूँ मलामत इस क़दर करते हो बे-हासिल है ये

क्यूँ बंद सब खुले हैं क्यूँ चीर अटपटा है

क्या बुरी तरह भौं मटकती है

ख़ुर्शीद-रू के आगे हो नूर का सवाली

ख़ुदा के वास्ते ऐ यार हम सीं आ मिल जा

जलते थे तुम कूँ देख के ग़ैर अंजुमन में हम

इश्क़ है इख़्तियार का दुश्मन

इस ज़ुल्फ़-ए-जाँ-गुज़ा कूँ सनम की बला कहो

इंसान है तो किब्र सीं कहता है क्यूँ अना

हुस्न पर है ख़ूब-रूयाँ में वफ़ा की ख़ू नहीं

हुआ हूँ दिल सेती बंदा पिया की मेहरबानी का

हमारे साँवले कूँ देख कर जी में जली जामुन

गरचे इस बुनियाद-ए-हस्ती के अनासिर चार हैं

गली अकेली है प्यारे अँधेरी रातें हैं

फ़जर उठ ख़्वाब सीं गुलशन में जब तुम ने मली अँखियाँ

दुश्मन-ए-जाँ है तिश्ना-ए-ख़ूँ है

दिल्ली के बीच हाए अकेले मरेंगे हम

दिल नीं पकड़ी है यार की सूरत

दिल है तिरे प्यार करने कूँ

देखो तो जान तुम कूँ मनाते हैं कब सेती

देख तू बे-रहम आशिक़ नीं तुझे छोड़ा नहीं

बढ़े है दिन-ब-दिन तुझ मुख की ताब आहिस्ता आहिस्ता

और वाइज़ के साथ मिल ले शैख़

अगर दिल इश्क़ सीं ग़ाफ़िल रहा है

अगर अँखियों सीं अँखियों को मिलाओगे तो क्या होगा

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