दिल के वीराने में घूमे तो भटक जाओगे
रौनक़-ए-कूचा-ओ-बाज़ार से आगे न बढ़ो
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हिस नहीं तड़प नहीं बाब-ए-अता भी क्यूँ खुले
ख़ुद हिजाबों सा ख़ुद जमाल सा था
बस एक बार मनाया था जश्न-ए-महरूमी
आगे हरीम-ए-ग़म से कोई रास्ता न था
वैसे ही ख़याल आ गया है
कटता कहाँ तवील था रातों का सिलसिला
जो दिल में थी निगाह सी निगाह में किरन सी थी
बड़े ताबाँ बड़े रौशन सितारे टूट जाते हैं
चाक-ए-दिल भी कभी सिलते होंगे
वो लम्हा कि ख़ामोशी-ए-शब नग़्मा-सरा थी
यही नहीं कि ज़ख़्म-ए-जाँ को चारा-जू मिला नहीं
क्यूँ