मंज़िलें न भूलेंगे राह-रौ भटकने से
शौक़ को तअल्लुक़ ही कब है पाँव थकने से
Anwar Masood
Allama Iqbal
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Faiz Ahmad Faiz
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Wasi Shah
Habib Jalib
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बाँध कर अहद-ए-वफ़ा कोई गया है मुझ से
वो पौ फटी वो किरन से किरन में आग लगी
इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया
नग़्मा-ए-इश्क़-ए-बुताँ और ज़रा आहिस्ता
नहीं किसी की तवज्जोह ख़ुद-आगही की तरफ़
अपने अपने हौसलों अपनी तलब की बात है
राहत की जुस्तुजू में ख़ुशी की तलाश में
मिरे शौक़-ए-जुस्तुजू का किसे ए'तिबार होता
यही महर ओ माह ओ अंजुम को गिला है मुझ से या-रब
हज़ार बार इरादा किए बग़ैर भी हम