अपने अपने हौसलों अपनी तलब की बात है
चुन लिया हम ने उन्हें सारा जहाँ रहने दिया
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मिरे शौक़-ए-जुस्तुजू का किसे ए'तिबार होता
मंज़िलें न भूलेंगे राह-रौ भटकने से
बाँध कर अहद-ए-वफ़ा कोई गया है मुझ से
नग़्मा-ए-इश्क़-ए-बुताँ और ज़रा आहिस्ता
बख़्शे फिर उस निगाह ने अरमाँ नए नए
राहत की जुस्तुजू में ख़ुशी की तलाश में
इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया
हज़ार बार इरादा किए बग़ैर भी हम
वो पौ फटी वो किरन से किरन में आग लगी
नहीं किसी की तवज्जोह ख़ुद-आगही की तरफ़