सीने में इक खटक सी है और बस
हम नहीं जानते कि क्या है दिल
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आशिक़ों को ऐ फ़लक देवेगा तू आज़ार क्या
मेरा शिकवा तिरी महफ़िल में अदू करते हैं
जिस दिल में तिरी ज़ुल्फ़ का सौदा नहीं होता
किसी की नेक हो या बद जहाँ में ख़ू नहीं छुपती
न छोड़ी ग़म ने मिरे इक जिगर में ख़ून की बूँद
बातें न किस ने हम को कहीं तेरे वास्ते
क्या हुए आशिक़ उस शकर-लब के
मैं बुरा ही सही भला न सही
शोर अब आलम में है उस शोबदा-पर्दाज़ का
फूल अल्लाह ने बनाए हैं महकने के लिए
जो होता आह तिरी आह-ए-बे-असर में असर
दोस्त जब दिल सा आश्ना ही नहीं