Khawab Poetry of Akhtar Hoshiyarpuri

Khawab Poetry of Akhtar Hoshiyarpuri
नामअख़्तर होशियारपुरी
अंग्रेज़ी नामAkhtar Hoshiyarpuri
जन्म की तारीख1918
मौत की तिथि2007
जन्म स्थानRawalpindi

मैं ने जो ख़्वाब अभी देखा नहीं है 'अख़्तर'

वो ज़िंदगी है उस को ख़फ़ा क्या करे कोई

वो रतजगा था कि अफ़्सून-ए-ख़्वाब तारी था

रुख़्सत-ए-रक़्स भी है पाँव में ज़ंजीर भी है

पहले तो सोच के दोज़ख़ में जलाता है मुझे

मिरी निगाह का पैग़ाम बे-सदा जो हुआ

मिरी निगाह का पैग़ाम बे-सदा जो हुआ

मेरे लहू में उस ने नया रंग भर दिया

मंज़िलों के फ़ासले दीवार-ओ-दर में रह गए

मैं हर्फ़ देखूँ कि रौशनी का निसाब देखूँ

ख़्वाहिशें इतनी बढ़ीं इंसान आधा रह गया

ख़्वाब-महल में कौन सर-ए-शाम आ कर पत्थर मारता है

बजा कि दुश्मन-ए-जाँ शहर-ए-जाँ के बाहर है

अपने क़दमों ही की आवाज़ से चौंका होता

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