मैं मुंतज़िर हूँ तेरी तमन्ना लिए हुए
आ जा फ़रोग़-ए-हुस्न की दुनिया लिए हुए
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कितने ताबाँ थे वो लम्हात तिरे पहलू में
न मिज़ाज-ए-नाज़-ए-जल्वा कभी पा सकीं निगाहें
मिरी आरज़ू की तस्कीं न करम में ने सितम में
मक़ाम-ए-दिल बहुत ऊँचा बना है
नश्तर से आरज़ू के दिल-ए-ज़िंदगी फ़िगार
जुनूँ भी ज़हमत ख़िरद भी ल'अनत है ज़ख़्म-ए-दिल की दवा मोहब्बत
दारू-ए-होश-रुबा नर्गिस-ए-बीमार तो हो