खुली आँखों नज़र आता नहीं कुछ
हर इक से पूछता हूँ वो गया क्या
Anwar Masood
Wasi Shah
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Gulzar
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(749) Peoples Rate This
दीदनी है ज़ख़्म-ए-दिल और आप से पर्दा भी क्या
किस जुर्म-ए-आरज़ू की सज़ा है ये ज़िंदगी
ज़माना इश्क़ के मारों को मात क्या देगा
कभी ज़बाँ पे न आया कि आरज़ू क्या है
मआल-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार कुछ भी नहीं
तिरी जबीं पे मिरी सुब्ह का सितारा है
चंद उलझी हुई साँसों की अता हूँ क्या हूँ
दिल-ए-शोरीदा की वहशत नहीं देखी जाती
कहें किस से हमारा खो गया क्या
लब-ए-सुकूत पे इक हर्फ़-ए-बे-नवा भी नहीं
तुम हो या छेड़ती है याद-ए-सहर कोई तो है
आ कि मैं देख लूँ खोया हुआ चेहरा अपना