ज़माना इश्क़ के मारों को मात क्या देगा
दिलों के खेल में ये जीत हार कुछ भी नहीं
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दिल की राहें ढूँडने जब हम चले
ना-उमीदी हर्फ़-ए-तोहमत ही सही क्या कीजिए
किस को फ़ुर्सत थी कि 'अख़्तर' देखता मेरी तरफ़
इसी मोड़ पर हम हुए थे जुदा
तिरी जबीं पे मिरी सुब्ह का सितारा है
दिल-ए-शोरीदा की वहशत नहीं देखी जाती
ये बे-सबब नहीं आए हैं आँख में आँसू
तू कहानी ही के पर्दे में भली लगती है
सफ़र ही शर्त-ए-सफ़र है तो ख़त्म क्या होगा
दुश्मन-ए-जाँ ही सही साथ तो इक उम्र का है
गुज़रना है जी से गुज़र जाइए
खुली आँखों नज़र आता नहीं कुछ