तू कहानी ही के पर्दे में भली लगती है
ज़िंदगी तेरी हक़ीक़त नहीं देखी जाती
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तिरी जबीं पे मिरी सुब्ह का सितारा है
ज़माना इश्क़ के मारों को मात क्या देगा
ज़िंदगी क्या हुए वो अपने ज़माने वाले
बंद रक्खोगे दरीचे दिल के यारो कब तलक
ये दश्त वो है जहाँ रास्ता नहीं मिलता
नैरंगी-ए-नशात-ए-तमन्ना अजीब है
चंद उलझी हुई साँसों की अता हूँ क्या हूँ
ये हम से पूछते हो रंज-ए-इम्तिहाँ क्या है
मिरा फ़साना हर इक दिल का माजरा तो न था
याद आएँ जो अय्याम-ए-बहाराँ तो किधर जाएँ
खुली आँखों नज़र आता नहीं कुछ