ये दश्त वो है जहाँ रास्ता नहीं मिलता
अभी से लौट चलो घर अभी उजाला है
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किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में
चराग़ ले के उसे ढूँडने चला हूँ मैं
दुश्मन-ए-जाँ ही सही साथ तो इक उम्र का है
बला-ए-तीरा-शबी का जवाब ले आए
बहुत क़रीब रही है ये ज़िंदगी हम से
बंद कर दे कोई माज़ी का दरीचा मुझ पर
हम ने माना इक न इक दिन लौट के तू आ जाएगा
नैरंगी-ए-नशात-ए-तमन्ना अजीब है
आज भी दश्त-ए-बला में नहर पर पहरा रहा
तुम से छुट कर ज़िंदगी का नक़्श-ए-पा मिलता नहीं
आ कि मैं देख लूँ खोया हुआ चेहरा अपना
ये बे-सबब नहीं आए हैं आँख में आँसू