बंद कर दे कोई माज़ी का दरीचा मुझ पर
अब इस आईने में सूरत नहीं देखी जाती
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ज़िंदगी छीन ले बख़्शी हुई दौलत अपनी
किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में
दिल-ए-शोरीदा की वहशत नहीं देखी जाती
सुन रहा हूँ बे-सदा नग़्मा जो मैं बा-चश्म-ए-तर
दुश्मन-ए-जाँ ही सही साथ तो इक उम्र का है
इसी मोड़ पर हम हुए थे जुदा
कौन जीने के लिए मरता रहे
मैं सफ़र में हूँ मगर सम्त-ए-सफ़र कोई नहीं
ये बे-सबब नहीं आए हैं आँख में आँसू
दिल की राहें ढूँडने जब हम चले
हर मौज गले लग के ये कहती है ठहर जाओ
कैसे समझाऊँ नसीम-ए-सुब्ह तुझ को क्या हूँ मैं