बहुत क़रीब रही है ये ज़िंदगी हम से
बहुत अज़ीज़ सही ए'तिबार कुछ भी नहीं
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नैरंगी-ए-नशात-ए-तमन्ना अजीब है
याद आएँ जो अय्याम-ए-बहाराँ तो किधर जाएँ
ना-उमीदी हर्फ़-ए-तोहमत ही सही क्या कीजिए
ये दश्त वो है जहाँ रास्ता नहीं मिलता
बंद कर दे कोई माज़ी का दरीचा मुझ पर
सुन रहा हूँ बे-सदा नग़्मा जो मैं बा-चश्म-ए-तर
निगाहें मुंतज़िर हैं किस की दिल को जुस्तुजू क्या है
कैसे समझाऊँ नसीम-ए-सुब्ह तुझ को क्या हूँ मैं
ज़िंदगी छीन ले बख़्शी हुई दौलत अपनी
कभी ज़बाँ पे न आया कि आरज़ू क्या है
चंद उलझी हुई साँसों की अता हूँ क्या हूँ