हर मौज गले लग के ये कहती है ठहर जाओ
दरिया का इशारा है कि हम पार उतर जाएँ
Jaun Eliya
Anwar Masood
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Javed Akhtar
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Gulzar
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(855) Peoples Rate This
सफ़र ही शर्त-ए-सफ़र है तो ख़त्म क्या होगा
किस जुर्म-ए-आरज़ू की सज़ा है ये ज़िंदगी
ज़िंदगी क्या हुए वो अपने ज़माने वाले
दिल-ए-शोरीदा की वहशत नहीं देखी जाती
ज़माना इश्क़ के मारों को मात क्या देगा
तू कहानी ही के पर्दे में भली लगती है
लब-ए-सुकूत पे इक हर्फ़-ए-बे-नवा भी नहीं
किस को फ़ुर्सत थी कि 'अख़्तर' देखता मेरी तरफ़
ना-उमीदी हर्फ़-ए-तोहमत ही सही क्या कीजिए
ये हम से पूछते हो रंज-ए-इम्तिहाँ क्या है
मिरा फ़साना हर इक दिल का माजरा तो न था