किस जुर्म-ए-आरज़ू की सज़ा है ये ज़िंदगी
ऐसा तो ऐ ख़ुदा मैं गुनहगार भी नहीं
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बहें न आँख से आँसू तो नग़्मगी बे-सूद
आ कि मैं देख लूँ खोया हुआ चेहरा अपना
ज़िंदगी छीन ले बख़्शी हुई दौलत अपनी
बंद कर दे कोई माज़ी का दरीचा मुझ पर
तिरी जबीं पे मिरी सुब्ह का सितारा है
निगाहें मुंतज़िर हैं किस की दिल को जुस्तुजू क्या है
लब-ए-सुकूत पे इक हर्फ़-ए-बे-नवा भी नहीं
सैर-गाह-ए-दुनिया का हासिल-ए-तमाशा क्या
मैं सफ़र में हूँ मगर सम्त-ए-सफ़र कोई नहीं
तुम से छुट कर ज़िंदगी का नक़्श-ए-पा मिलता नहीं
आज भी दश्त-ए-बला में नहर पर पहरा रहा
मआल-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार कुछ भी नहीं