ज़िंदगी क्या हुए वो अपने ज़माने वाले
याद आते हैं बहुत दिल को दुखाने वाले
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चराग़ ले के उसे ढूँडने चला हूँ मैं
दुश्मन-ए-जाँ ही सही साथ तो इक उम्र का है
तुम से छुट कर ज़िंदगी का नक़्श-ए-पा मिलता नहीं
मैं सफ़र में हूँ मगर सम्त-ए-सफ़र कोई नहीं
तू कहानी ही के पर्दे में भली लगती है
बंद कर दे कोई माज़ी का दरीचा मुझ पर
कौन जीने के लिए मरता रहे
मिरा फ़साना हर इक दिल का माजरा तो न था
खुली आँखों नज़र आता नहीं कुछ
ये दश्त वो है जहाँ रास्ता नहीं मिलता
बहें न आँख से आँसू तो नग़्मगी बे-सूद
मआल-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार कुछ भी नहीं