चराग़ ले के उसे ढूँडने चला हूँ मैं
जो आफ़्ताब की मानिंद इक उजाला है
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नैरंगी-ए-नशात-ए-तमन्ना अजीब है
तू कहानी ही के पर्दे में भली लगती है
मुद्दत से लापता है ख़ुदा जाने क्या हुआ
दिल की राहें ढूँडने जब हम चले
ज़िंदगी क्या हुए वो अपने ज़माने वाले
हम ने माना इक न इक दिन लौट के तू आ जाएगा
हर मौज गले लग के ये कहती है ठहर जाओ
याद आएँ जो अय्याम-ए-बहाराँ तो किधर जाएँ
बहें न आँख से आँसू तो नग़्मगी बे-सूद
बंद कर दे कोई माज़ी का दरीचा मुझ पर
तिरी जबीं पे मिरी सुब्ह का सितारा है