Love Poetry of Akhtar Shirani (page 2)

Love Poetry of Akhtar Shirani (page 2)
नामअख़्तर शीरानी
अंग्रेज़ी नामAkhtar Shirani
जन्म की तारीख1905
मौत की तिथि1948
जन्म स्थानLahore

ऐ इश्क़ कहीं ले चल

ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

आँसू

ज़मान-ए-हिज्र मिटे दौर-ए-वस्ल-ए-यार आए

यूँ तो किस फूल से रंगत न गई बू न गई

यारो कू-ए-यार की बातें करें

यक़ीन-ए-वादा नहीं ताब-ए-इंतिज़ार नहीं

वो कहते हैं रंजिश की बातें भुला दें

वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए

वादा उस माह-रू के आने का

उस मह-जबीं से आज मुलाक़ात हो गई

उन रस भरी आँखों में हया खेल रही है

उम्र भर की तल्ख़ बेदारी का सामाँ हो गईं

तमन्नाओं को ज़िंदा आरज़ूओं को जवाँ कर लूँ

सू-ए-कलकत्ता जो हम ब-दिल-ए-दीवाना चले

निकहत-ए-ज़ुल्फ़ से नींदों को बसा दे आ कर

न वो ख़िज़ाँ रही बाक़ी न वो बहार रही

न भूल कर भी तमन्ना-ए-रंग-ओ-बू करते

मोहब्बत की दुनिया में मशहूर कर दूँ

मिरी आँखों से ज़ाहिर ख़ूँ-फ़िशानी अब भी होती है

मैं आरज़ू-ए-जाँ लिखूँ या जान-ए-आरज़ू!

ला पिला साक़ी शराब-ए-अर्ग़वानी फिर कहाँ

कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता

किस को देखा है ये हुआ क्या है

किस की आँखों का लिए दिल पे असर जाते हैं

ख़यालिस्तान-ए-हस्ती में अगर ग़म है ख़ुशी भी है

काम आ सकीं न अपनी वफ़ाएँ तो क्या करें

झूम कर बदली उठी और छा गई

हर एक जल्वा-ए-रंगीं मिरी निगाह में है

हमारे हाथ में कब साग़र-ए-शराब नहीं

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