Sharab Poetry of Akhtar Shirani

Sharab Poetry of Akhtar Shirani
नामअख़्तर शीरानी
अंग्रेज़ी नामAkhtar Shirani
जन्म की तारीख1905
मौत की तिथि1948
जन्म स्थानLahore

दिन रात मय-कदे में गुज़रती थी ज़िंदगी

वक़्त की क़द्र

नज़्र-ए-वतन

मुझे ले चल

जहाँ 'रेहाना' रहती थी

एक शाएरा की शादी पर

दावत

बस्ती की लड़कियों के नाम

बरखा-रुत

ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

यारो कू-ए-यार की बातें करें

यक़ीन-ए-वादा नहीं ताब-ए-इंतिज़ार नहीं

वो कहते हैं रंजिश की बातें भुला दें

उन को बुलाएँ और वो न आएँ तो क्या करें

सू-ए-कलकत्ता जो हम ब-दिल-ए-दीवाना चले

निकहत-ए-ज़ुल्फ़ से नींदों को बसा दे आ कर

न भूल कर भी तमन्ना-ए-रंग-ओ-बू करते

मोहब्बत की दुनिया में मशहूर कर दूँ

मिरी शाम-ए-ग़म को वो बहला रहे हैं

मिरी आँखों से ज़ाहिर ख़ूँ-फ़िशानी अब भी होती है

ला पिला साक़ी शराब-ए-अर्ग़वानी फिर कहाँ

किस की आँखों का लिए दिल पे असर जाते हैं

ख़यालिस्तान-ए-हस्ती में अगर ग़म है ख़ुशी भी है

झूम कर बदली उठी और छा गई

हमारे हाथ में कब साग़र-ए-शराब नहीं

दिल-ए-दीवाना ओ अंदाज़-ए-बेबाकाना रखते हैं

दिल में ख़याल-ए-नर्गिस-ए-जानाना आ गया

बजा कि है पास-ए-हश्र हम को करेंगे पास-ए-शबाब पहले

ऐ दिल वो आशिक़ी के फ़साने किधर गए

अगर वो अपने हसीन चेहरे को भूल कर बे-नक़ाब कर दे

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