ब'अद मुद्दत मुझे नींद आई बड़े चैन की नींद
ख़ाक जब ओढ़ ली और ख़ाक बिछा ली मैं ने
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अजनबी सा इक सितारा हूँ मैं सय्यारों के बीच
ख़िज़ाँ की ज़र्द सी रंगत बदल भी सकती है
ज़िंदा रहने की ये तरकीब निकाली मैं ने
आज फिर
बगूला बन के नाचता हुआ ये तन गुज़र गया
किसी के वास्ते तस्वीर-ए-इंतिज़ार थे हम
सारे मौसम बदल गए शायद
अभी तो चाक पे जारी है रक़्स मिट्टी का
जुनूँ में दामन-ए-दिल गरचे तार तार हुआ
शाम की पुरवाई
पुकारते पुकारते सदा ही और हो गई