किसी के वास्ते तस्वीर-ए-इंतिज़ार थे हम
वो आ गया प कहाँ ख़त्म इंतिज़ार हुआ
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मौसम-ए-गुल पर ख़िज़ाँ का ज़ोर चल जाता है क्यूँ
अँधेरी शब का ये ख़्वाब-मंज़र मुझे उजालों से भर रहा है
अजनबी सा इक सितारा हूँ मैं सय्यारों के बीच
ज़िंदा रहने की ये तरकीब निकाली मैं ने
पुकारते पुकारते सदा ही और हो गई
ये किस मुहिम पर चले थे हम जिस में रास्ते पुर-ख़तर न आए
अजब सी कशमकश तमाम उम्र साथ साथ थी
मुझे तो इंतिज़ार-ए-इश्क़ में ही लुत्फ़ आता है
नज़्म तकमील
शाम की पुरवाई
कुछ कड़े टकराओ दे जाती है अक्सर रौशनी
बगूला बन के नाचता हुआ ये तन गुज़र गया