तिरी दुनिया जहान-ए-मुर्ग़-ओ-माही
मिरी दुनिया फ़ुग़ान-ए-सुब्ह-गाही
तिरी दुनिया में मैं महकूम ओ मजबूर
मिरी दुनिया में तेरी पादशाही!
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सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
फ़ितरत ने न बख़्शा मुझे अंदेशा-ए-चालाक
मन की दौलत हाथ आती है तो फिर जाती नहीं
जवानों को मिरी आह-ए-सहर दे
नाला है बुलबुल-ए-शोरीदा तिरा ख़ाम अभी
कोई देखे तो मेरी नय-नवाज़ी
मुझे आह-ओ-फ़ुग़ान-ए-नीम-शब का फिर पयाम आया
जावेद के नाम
गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
फिर चराग़-ए-लाला से रौशन हुए कोह ओ दमन
अरब के सोज़ में साज़-ए-अजम है