तिरे सीने में दम है दिल नहीं है
तिरा दम गर्मी-ए-महफ़िल नहीं है
गुज़र जा अक़्ल से आगे कि ये नूर
चराग़-ए-राह है मंज़िल नहीं है!
Anwar Masood
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Javed Akhtar
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Parveen Shakir
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Rahat Indori
Habib Jalib
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तुझे याद क्या नहीं है मिरे दिल का वो ज़माना
न आते हमें इस में तकरार क्या थी
शुआ-ए-उम्मीद
यूँ हाथ नहीं आता वो गौहर-ए-यक-दाना
उक़ाबी रूह जब बेदार होती है जवानों में
तराना-ए-हिन्दी
बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ नहीं हम
निगाह-ए-फ़क़्र में शान-ए-सिकंदरी क्या है
ताज़ा फिर दानिश-ए-हाज़िर ने किया सेहर-ए-क़ादिम
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
मार्च 1907
जावेद के नाम