किसी रईस की महफ़िल का ज़िक्र ही क्या है
ख़ुदा के घर भी न जाएँगे बिन बुलाए हुए
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सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
छेड़ देखो मिरी मय्यत पे जो आए तो कहा
हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
अच्छे ईसा हो मरीज़ों का ख़याल अच्छा है
पिला साक़िया अर्ग़वानी शराब
ज़ाहिद उमीद-ए-रहमत-ए-हक़ और हज्व-ए-मय
कहा जो मैं ने कि यूसुफ़ को ये हिजाब न था
तरफ़-ए-काबा न जा हज के लिए नादाँ है
यार पहलू में है तन्हाई है कह दो निकले
बाक़ी न दिल में कोई भी या रब हवस रहे
किस ढिटाई से वो दिल छीन के कहते हैं 'अमीर'