हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी
क्यूँ तुम आसान समझते थे मोहब्बत मेरी
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आया न एक बार अयादत को तू मसीह
दिल जुदा माल जुदा जान जुदा लेते हैं
वादा-ए-वस्ल और वो कुछ बात है
मुश्किल बहुत पड़ेगी बराबर की चोट है
ख़ुश्क सेरों तन-ए-शाएर का लहू होता है
पिला साक़िया अर्ग़वानी शराब
तीर पर तीर लगाओ तुम्हें डर किस का है
बाक़ी न दिल में कोई भी या रब हवस रहे
कबाब-ए-सीख़ हैं हम करवटें हर-सू बदलते हैं
गर्द उड़ी आशिक़ की तुर्बत से तो झुँझला कर कहा
आए बुत-ख़ाने से काबे को तो क्या भर पाया
ये कहूँगा ये कहूँगा ये अभी कहते हो