मोहब्बत की एक नज़्म

मोहब्बत की एक नज़्म

अगर कभी मेरी याद आए

तो चाँद रातों की नर्म दिल-गीर रौशनी में

किसी सितारे को देख लेना

अगर वो नख़्ल-ए-फ़लक से उड़ कर

तुम्हारे क़दमों में आ गिरे

तो ये जान लेना वो इस्तिआ'रा था मेरे दिल का

अगर न आए

मगर ये मुमकिन ही किस तरह है

कि तुम किसी पर निगाह डालो

तो उस की दीवार-ए-जाँ न टूटे

वो अपनी हस्ती न भूल जाए

अगर कभी मेरी याद आए

गुरेज़ करती हवा की लहरों पे हाथ रखना

मैं ख़ुशबुओं में तुम्हें मिलूँगा

मुझे गुलाबों की पत्तियों में तलाश करना

मैं ओस-क़तरों के आईनों में तुम्हें मिलूँगा

अगर सितारों में ओस-क़तरों में ख़ुशबुओं में न पाओ मुझ को

तो अपने क़दमों में देख लेना मैं गर्द होती मसाफ़तों में तुम्हें मिलूँगा

कहीं पे रौशन चराग़ देखो

तो जान लेना कि हर पतंगे के साथ मैं भी बिखर चुका हूँ

तुम अपनी हाथों से उन पतंगों की ख़ाक दरिया में डाल देना

मैं ख़ाक बन कर समुंदरों में सफ़र करूँगा

किसी न देखे हुए जज़ीरे पे

रुक के तुम को सदाएँ दूँगा

समुंदरों के सफ़र पे निकलो

तो उस जज़ीरे पे भी उतरना

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