कैसा मुझ को बना दिया 'अम्मार'
कौन सा रंग भर गए मुझ में
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एक ही बात मुझ में अच्छी है
अक्स कितने उतर गए मुझ में
जाओ मातम गुज़ारो जाने दो
हेलुसिनेशन
ख़ुद ही जाने लगे थे और ख़ुद ही
उस ने नासूर कर लिया होगा
रात से जंग कोई खेल नईं
मुझ से बनता हुआ तू तुझ को बनाता हुआ मैं
यूँही बे-बाल-ओ-पर खड़े हुए हैं
ख़ुद-परस्ती से इश्क़ हो गया है
एक दरवेश को तिरी ख़ातिर