तरब के मख़मसे ग़म के झमेले
तरब के मख़मसे ग़म के झमेले
दिल-ए-नादाँ ने लाखों खेल खेले
गए इक एक कर के हम-सफ़र सब
हमीं ज़िंदा हैं मरने को अकेले
ग़म-ए-दौराँ से उतनी बार हारे
ग़म-ए-जानाँ से जितनी बार खेले
दिल आख़िर ताब लाता भी तो कब तक
क़यामत थे तमन्नाओं के रेले
ये दुनिया ख़त्म हो जाएगी आख़िर
न होंगे ख़त्म दुनिया के झमेले
न कोई हम-ख़याल ऐ 'अर्श' पाया
रहे हम अंजुमन में भी अकेले
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