चमन में कौन है पुरसान-ए-हाल शबनम का
ग़रीब रोई तो ग़ुंचों को भी हँसी आई
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जिस में हो दोज़ख़ का डर क्या लुत्फ़ उस जीने में है
दर्द का हाल आह से पूछो
दर्द मेराज को पहुँचता है
आग ही आग है गुलशन ये कोई क्या जाने
ख़ाना-ए-दिल में दाग़ जल न सका
रहगुज़र रहगुज़र से पूछ लिया
बला है क़हर है आफ़त है फ़ित्ना है क़यामत है
मैं क्यूँ भूल जाऊँ
तिरी दुनिया को ऐ वाइज़ मिरी दुनिया से क्या निस्बत
इश्क़-ए-बुताँ का ले के सहारा कभी कभी
वो ले के हौसला-ए-अज़्म-ए-बे-पनाह चले
फ़रिश्ते को मिरे नाले यूँही बदनाम करते हैं