फ़रिश्ते को मिरे नाले यूँही बदनाम करते हैं
मिरे आमाल लिखती हैं मिरी क़िस्मत की तहरीरें
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पहला सा वो जुनून-ए-मोहब्बत नहीं रहा
'अर्श' किस दोस्त को अपना समझूँ
है देखने वालों को सँभलने का इशारा
वो सहरा जिस में कट जाते हैं दिन याद-ए-बहाराँ से
'अर्श' पहले ये शिकायत थी ख़फ़ा होता है वो
भारत के वीर सिपाही
अगर तक़दीर तेरी बाइस-ए-आज़ार हो जाए
साक़ी मिरी ख़मोश-मिज़ाजी की लाज रख
मौत ही इंसान की दुश्मन नहीं
इक रौशनी सी दिल में थी वो भी नहीं रही
बस इसी धुन में रहा मर के मिलेगी जन्नत