मौत ही इंसान की दुश्मन नहीं
ज़िंदगी भी जान ले कर जाएगी
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मोहब्बत सोज़ भी है साज़ भी है
सब देखने वाले उन्हें ग़श खाए हुए हैं
लुत्फ़ ही लुत्फ़ है जो कुछ है इनायत के सिवा
15 अगस्त (1949)
दर्द का हाल आह से पूछो
भारत के वीर सिपाही
तिरी दुनिया को ऐ वाइज़ मिरी दुनिया से क्या निस्बत
वो ले के हौसला-ए-अज़्म-ए-बे-पनाह चले
जश्न-ए-आज़ादी
मैं क्यूँ भूल जाऊँ
है देखने वालों को सँभलने का इशारा
कारवाँ से कुछ इस तरह बिछड़े