तिरी दुनिया को ऐ वाइज़ मिरी दुनिया से क्या निस्बत
तिरी दुनिया में तक़दीरें मेरी दुनिया में तदबीरें
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मेरा वतन
नैरंगी-ए-बहार-ओ-ख़िज़ाँ देखते रहे
जश्न-ए-आज़ादी
हिन्दोस्तान मेरा
जिस में हो दोज़ख़ का डर क्या लुत्फ़ उस जीने में है
दर्द का हाल आह से पूछो
है देखने वालों को सँभलने का इशारा
ये दुनिया है उसे दार-उल-फ़ितन कहना ही पड़ता है
पी लेंगे ज़रा शैख़ तो कुछ गर्म रहेंगे
भारत के वीर सिपाही
इश्क़-ए-बुताँ का ले के सहारा कभी कभी
जितनी वो मिरे हाल पे करते हैं जफ़ाएँ