जितनी वो मिरे हाल पे करते हैं जफ़ाएँ
आता है मुझे उन की मोहब्बत का यक़ीं और
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ख़ाना-ए-दिल में दाग़ जल न सका
मोहब्बत सोज़ भी है साज़ भी है
दीवाली
ख़ुश्क बातों में कहाँ है शैख़ कैफ़-ए-ज़िंदगी
तौबा तौबा ये बला-ख़ेज़ जवानी तौबा
ये दुनिया है उसे दार-उल-फ़ितन कहना ही पड़ता है
जश्न-ए-आज़ादी
है देखने वालों को सँभलने का इशारा
दिल-ए-फ़सुर्दा पे सौ बार ताज़गी आई
मौत ही इंसान की दुश्मन नहीं
सब देखने वाले उन्हें ग़श खाए हुए हैं
मेरे प्यारे वतन