उन की फ़ितरत उस को कहिए या कि फ़ितरत का उसूल

उन की फ़ितरत उस को कहिए या कि फ़ितरत का उसूल

डूब जाते हैं सितारे और बिखर जाते हैं फूल

इक नज़र की क्या हक़ीक़त है मगर ऐ दोस्तो

उम्र भर की मौत बन जाती है इक लम्हे की भूल

हम तो हैं उन महफ़िलों के आज तक मारे हुए

जिन में नग़्मों की है शोरिश जिन में ज़ुल्फ़ों की है धूल

और जो कुछ भी है उन के दरमियाँ वो है गराँ

ज़िंदगी अर्ज़ां है और है मौत भी सहलुल-हुसूल

आज तक दहकी हुई सीने में है आरिज़ की आग

दिल में अब तक चुभ रहे हैं उन की पलकों के बबूल

दे रहे हैं इस तरह वो 'काकवी'-साहब की दाद

पूछते हैं आप के अशआ'र की शान-ए-नुज़ूल

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