कभी उन का नहीं आना ख़बर के ज़ैल में था
मगर अब उन का आना ही तमाशा हो गया है
Rahat Indori
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Anwar Masood
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(685) Peoples Rate This
ये माना सैल-ए-अश्क-ए-ग़म नहीं कुछ कम मगर 'अरशद'
ज़िम्मेदारी
मुझ को तलाश करते हो औरों के दरमियाँ
दर्द की साकित नदी फिर से रवाँ होने को है
नफ़ी ओ इसबात
कुछ तो मिल जाए कहीं दीदा-ए-पुर-नम के सिवा
समुंदर से किसी लम्हे भी तुग़्यानी नहीं जाती
वो आए तो लगा ग़म का मुदावा हो गया है
हम ज़ीस्त की मौजों से किनारा नहीं करते
बिला-सबब तो कोई बर्ग भी नहीं हिलता
वो ज़माने का तग़य्युर हो कि मौसम का मिज़ाज