मुझ को तलाश करते हो औरों के दरमियाँ
हैरान हो रहा हूँ तुम्हारे गुमान पर
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धूप छाँव के दरमियाँ
हम ज़ीस्त की मौजों से किनारा नहीं करते
वो ज़माने का तग़य्युर हो कि मौसम का मिज़ाज
ऐ दिल तिरे तुफ़ैल जो मुझ पर सितम हुए
समुंदर से किसी लम्हे भी तुग़्यानी नहीं जाती
ये माना सैल-ए-अश्क-ए-ग़म नहीं कुछ कम मगर 'अरशद'
ख़दशा
तलातुम है न जाँ-लेवा भँवर है
बिला-सबब तो कोई बर्ग भी नहीं हिलता
कभी अंगड़ाई ले कर जब समुंदर जाग उठता है
ज़माना कुछ भी कहे तेरी आरज़ू कर लूँ