अजीब चीज़ है ये शौक़-ए-आरज़ू-मंदी
हयात मिट के रही दिल ख़राब हो के रहा
Rahat Indori
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Faiz Ahmad Faiz
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हम तो आवारा-ए-सहरा हैं हमें क्या मतलब
निगाह-ए-शौक़ से कब तक मुक़ाबला करते
रक़्स-ए-आशुफ़्ता-सरी की कोई तदबीर सही
तमाम हुस्न-ए-जहाँ का जवाब हो के रहा
फ़लसफ़ी किस लिए इल्ज़ाम-ए-फ़ना देता है
ख़ुलूस-ए-अल्फ़ाज़ काम आया निगाह-ए-अहल-ए-फ़ितन से पहले
शौक़-ए-आवारा दश्त-ओ-दर से है
उफ़ुक़ के ख़ूनीं धुँदलकों का सुब्ह नाम नहीं
निगाह-ए-नाज़ की मासूमियत अरे तौबा
मता-ए-शौक़ तो है दर्द-ए-रोज़गार तो है
कारवाँ तीरा-शब में चलते हैं
न सहरा है न अब दीवार-ओ-दर है