शहज़ादी के कानों में जो बात कही थी इक तू ने
ब'अद तिरे वो बात तिरे ही अफ़्सानों में गूँजती है
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Anwar Masood
Gulzar
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(780) Peoples Rate This
पौ फटते ही ट्रेन की सीटी जब कानों में गूँजती है
बाम-ओ-दर पर उतरने वाली धूप
शाम खुलती है तेरे आने से
नज़्म
ख़्वाब का इंतिज़ार ख़त्म हुआ
अपनी आँखें जो बंद कर देखूँ
ज़ख़्म खा के भी मुस्कुराते हैं
डूबने की न तैरने की ख़बर
सुनहरी धूप से चेहरा निखार लेती हूँ
किस के मातम में रो रही है रात
मुझ को ख़्वाबों के बाग़ में ला कर
हम ने जब हाल-ए-दिल उन से अपना कहा