ख़्वाब का इंतिज़ार ख़त्म हुआ
आँख को नींद से जगाते हैं
Anwar Masood
Gulzar
Habib Jalib
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Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
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आइने पर तो है भरोसा मुझे
नज़्म
किस के मातम में रो रही है रात
अपनी आँखें जो बंद कर देखूँ
ज़ख़्म खा के भी मुस्कुराते हैं
नहीं वो इतना भी पागल नहीं था
ये सोचा ही नहीं था तिश्नगी में
मिरे वजूद के अंदर है इक क़दीम मकान
चुभ रही है अँधेरी रात मुझे
ख़ुद मैं धूनी रमाए बैठी हूँ