चुभ रही है अँधेरी रात मुझे
हर सितारा बुझाए बैठी हूँ
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सदियों को बेहाल किया था
मुझ को ख़्वाबों के बाग़ में ला कर
शाम खुलती है तेरे आने से
ख़ुश्बू जैसी रात ने मेरा
नज़्म
किस के मातम में रो रही है रात
ये सोचा ही नहीं था तिश्नगी में
आइने पर तो है भरोसा मुझे
बाम-ओ-दर पर उतरने वाली धूप
अपनी आँखें जो बंद कर देखूँ
पौ फटते ही ट्रेन की सीटी जब कानों में गूँजती है
नहीं वो इतना भी पागल नहीं था