शाम खुलती है तेरे आने से
लब पे तेरा सवाल रखती है
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मुझ को ख़्वाबों के बाग़ में ला कर
किस के मातम में रो रही है रात
ख़्वाब का इंतिज़ार ख़त्म हुआ
नज़्म
डूबने की न तैरने की ख़बर
अपनी हालत पे आँसू बहाने लगे
ख़ुश्बू जैसी रात ने मेरा
तेरी यादें बहाल रखती है
नहीं वो इतना भी पागल नहीं था
आइने पर तो है भरोसा मुझे
ये सोचा ही नहीं था तिश्नगी में
शहज़ादी के कानों में जो बात कही थी इक तू ने