डूबने की न तैरने की ख़बर
इश्क़-दरिया में बस उतर देखूँ
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शाम खुलती है तेरे आने से
नहीं वो इतना भी पागल नहीं था
चुभ रही है अँधेरी रात मुझे
ज़ख़्म खा के भी मुस्कुराते हैं
नज़्म
हम ने जब हाल-ए-दिल उन से अपना कहा
ख़्वाब का इंतिज़ार ख़त्म हुआ
आइने पर तो है भरोसा मुझे
अपनी हालत पे आँसू बहाने लगे
पौ फटते ही ट्रेन की सीटी जब कानों में गूँजती है
सुनहरी धूप से चेहरा निखार लेती हूँ