बाम-ओ-दर पर उतरने वाली धूप
सब्ज़ रंग-ए-मलाल रखती है
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डूबने की न तैरने की ख़बर
किस के मातम में रो रही है रात
पौ फटते ही ट्रेन की सीटी जब कानों में गूँजती है
अपनी आँखें जो बंद कर देखूँ
शाम खुलती है तेरे आने से
शहज़ादी के कानों में जो बात कही थी इक तू ने
चुभ रही है अँधेरी रात मुझे
सदियों को बेहाल किया था
आइने पर तो है भरोसा मुझे
ये सोचा ही नहीं था तिश्नगी में
ख़्वाब का इंतिज़ार ख़त्म हुआ
मुझ को ख़्वाबों के बाग़ में ला कर