मिरे वजूद के अंदर है इक क़दीम मकान
जहाँ से मैं ये उदासी उधार लेती हूँ
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तेरी यादें बहाल रखती है
मुझ को ख़्वाबों के बाग़ में ला कर
नज़्म
ख़ुश्बू जैसी रात ने मेरा
ये सोचा ही नहीं था तिश्नगी में
चुभ रही है अँधेरी रात मुझे
किस के मातम में रो रही है रात
हम ने जब हाल-ए-दिल उन से अपना कहा
अपनी हालत पे आँसू बहाने लगे
सदियों को बेहाल किया था
सुनहरी धूप से चेहरा निखार लेती हूँ