हमारे इश्क़ में रुस्वा हुए तुम
मगर हम तो तमाशा हो गए हैं
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दिल की मसर्रतें नई जाँ का मलाल है नया
जी न सकूँ मैं जिस के बग़ैर
दरवाज़ा खुला है कि कोई लौट न जाए
कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा
क्या वक़्त पड़ा है तिरे आशुफ़्ता-सरों पर
उस ने मिरी निगाह के सारे सुख़न समझ लिए
इक शक्ल हमें फिर भाई है इक सूरत दिल में समाई है
सोचते और जागते साँसों का इक दरिया हूँ मैं
तू मिला था और मेरे हाल पर रोया भी था
'अतहर' तुम ने इश्क़ किया कुछ तुम भी कहो क्या हाल हुआ
बहुत छोटे हैं मुझ से मेरे दुश्मन