बहुत से साँप थे इस ग़ार के दहाने पर
दिल इस लिए भी ख़ज़ाना शुमार होने लगा
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भँवर से ये जो मुझे बादबान खींचता है
ऐसी ग़ुर्बत को ख़ुदा ग़ारत करे
दलील उस के दरीचे की पेश की मैं ने
तिरे ब'अद कोई भी ग़म असर नहीं कर सका
गीले बालों को सँभाल और निकल जंगल से
उस लब की ख़ामुशी के सबब टूटता हूँ मैं
ठहरना भी मिरा जाना शुमार होने लगा
कोई भी शक्ल मिरे दिल में उतर सकती है
कैसे दुनिया का जाएज़ा किया जाए
हमारे ज़ाहिरी अहवाल पर न जा हम लोग
ख़ुद पर हराम समझा समर के हुसूल को